Satyam Shivam Sundaram Zeenat सत्यम शिवम् सुंदरम में ज़ीनत:
‘सत्यम शिवम् सुंदरम’एक ऐसी फ़िल्म है जिसे लोग आज भी बेहतरीन फ़िल्म मानते हैं। इस फ़िल्म की कहानी की मूल बात है कि इसमें मन की ख़ूबसूरती देखने की बात कही गयी है। इस फ़िल्म में ज़ीनत अमान के किरदार को आज भी याद किया जाता है। (Satyam Shivam Sundaram Zeenat)। फ़िल्म के सारे गीत भी ख़ूबसूरत हैं। एक आवाज़ से ही फ़िल्म के हीरो को प्यार होता है।
इस फ़िल्म में ये दिखाया गया कि जब हीरो को पता चलता है। आवाज़ की मालकिन की सूरत ख़ूबसूरत नहीं है। तो वो उसे पसंद नहीं करता या उससे दूर भागता है। इस फ़िल्म में राज कपूर ने ज़ीनत अमान को लिया। उन्हें इस फ़िल्म में बिलकुल अलग तरह से पेश किया गया। लेकिन क्या आपको ये पता है कि ज़ीनत अमान पहले इस फ़िल्म की चॉइस नहीं थी।
इस फ़िल्म को राज कपूर ने लता मंगेशकर के लिए ही सोचकर बनायी थी। उनका कहना था कि इस फ़िल्म में आवाज़ अहम है। इसलिए लता जी ही किरदार में फ़िट होंगी।ये सोचते हुए लता मंगेशकर से राज कपूर ने बात भी की थी। कहा जाता है कि लता मंगेशकर ने एक इंटरव्यू में राज कपूर की बात सुनी। उसके बाद फ़िल्म के लिए मना कर दिया था।
राज कपूर ने इंटरव्यू में कहा था। पत्थर तब तक पत्थर रहता है जब तक उस पर कोई धार्मिक निशान न हो। जैसे ही कोई धार्मिक निशान होता है वो भगवान बन जाता है। आप एक आवाज़ के दीवाने हो जाते हैं। लेकिन जैसे ही पता चलता है कि आवाज़ बदसूरत लड़की की है। (Satyam Shivam Sundaram Zeenat)। इस बात को कहकर राज कपूर ने ये शब्द हटाने के लिए कहा था।
लता मंगेशकर तक जब ये बात पहुँची। तो उन्हें ये बात बुरी लगी और उन्होंने इसके लिए मना कर दिया। वैसे लता मंगेशकर ने यतींद्र मिश्रा की किताब लता सुरगाथा में उन्होंने बताया था। इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट मुझे ध्यान में रखकर बनायी गयी थी। लेकिन मैंने कहा कि मैं आवाज़ तो दे सकती हूँ। राज जी ज़रा अनमने तो हुए लेकिन मान गए।