आशा भोंसले की दिलकश आवाज़ के सभी क़ायल हैं। उनकी आवाज़ में ऐसी खनक है जो सुनने वाले को अपनी ओर खींच लेती है। गाते समय अलग-अलग तरह की हरकत लेना उनकी ख़ूबियों में शुमार है। ऐसे में वो अक्सर गाते समय कोई न कोई बदलाव करती आयी हैं जिससे संगीतकार भी प्रभावित होते हैं। आशा भोंसले का मानना है कि अगर कोई सीधे-सीधे गा दे तो इसका क्या फ़ायदा है। असली गाना तो वो है जो फ़िल्माने के बाद सीन में जान डाल दे।
आशा भोंसले अपनी इस आदत के कारण अभिनेत्री और मूड के हिसाब से हरकतें जोड़ दिया करती थीं। कुछ यही काल मुहम्मद रफ़ी साहब भी करते थे लेकिन एक बार आशा भोंसले से मुहम्मद रफ़ी साहब इतने नाराज़ हो गए कि उन्होंने आशा भोंसले से कई दिनों तक बात ही नहीं किया था। जी हाँ, बड़े-बड़े कलाकारों का इस तरह का अन्दाज़ सुनकर ही अपने आप में मज़ा आता है।
हुआ यूँ कि “काला पानी” फ़िल्म के गीत “अच्छा जी मैं हारी” की रिकॉर्डिंग होनी थी। रहर्सल हो चुकी थी और बस रिकॉर्डिंग होने को थी। आशा जी को ये बता नहीं जँच रही थी कि गाने में रूठने मनाने की बात हो रही है और ये गाना फ़िल्माया जाना है नाज़-ओ-अन्दाज़ से भरी मधुबाला और चुलबुले, नटखट शरारती अन्दाज़ वाले देव आनंद पर फिर भी ये गाना एकदम सीधा-सीधा रखा गया है।

आख़िर रिकॉर्डिंग के समय आशा जी ने “अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ न” गाते हुए “चलो मान जाओ न” में ऐसी हरकत ली (जो आज भी गीत में है) जो रिहर्सल के दौरान नहीं गायी गायी थी। बस रफ़ी साहब उनका मुँह देखने लगे और आशा जी ने मुस्कुराकर उन्हें उनकी लाइन गाने कही तो रफ़ी साहब ने उन्हीं की तरह मुँह बनते हुए जवाब में गाया “देखी सबकी यारी मेरा दिल जलाओ न..”
इस तरह ये गीत तो बहुत ही ख़ूबसूरत नज़र आया लेकिन इस गाने में अचानक फेरबदल करके ली गयी हरकत रफ़ी साहब को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने आशा जी से कई दिनों तक बात ही नहीं की। इस बंद बातचीत के दौरान एक और गाने की रिकॉर्डिंग भी हो गयी। सोचिए तो नाराज़ हैं पर गाने की रिकॉर्डिंग पर असर नहीं पड़ता था। ऐसे हुनरमंद लेकिन बचपन को दिल में बसाने वाले थे ये बड़े कलाकार।